भगवद गीता के रहस्य – सब कुछ पाने की कला – 11 Bhagwad Geeta Rahasya

11 भगवद गीता रहस्य – सब कुछ पाने की कला – Bhagwad Geeta Rahasya – दोस्तों यहाँ भगवद गीता के उन 11 रहस्यों का वर्णन है जिन्हे आप जान लेंगे तो ना केवल आप इस जहाँ में बहुत ही कलात्मक रूप से जीना सीख जायेंगे बल्कि यह भी जान जायेंगे कि आप सब कुछ कैसे पा सकते हैं। हर वह चीज जो आप चाहते हैं।

भगवद गीता के रहस्य

दोस्तों, भगवद गीता कोई एक धार्मिक पुस्तक मात्र नहीं है। यह रहस्य है जीवन का। जीवन को समझने का। यह जान लेने का कि कैसे यह ब्रह्माण्ड कार्य करता है। हां दोस्तों भगवद गीता को वेदों का सार कहा गया है। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने बहुत से ऐसी बाते बताई है जो यदि मनुष्य सच जानने के साथ मान भी ले तो उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाए। चाहे वो कैसी भी समस्या हो। वह कोई आर्थिक समस्या हो, कोई सामाजिक या शारीरिक समस्या हो।

सभी को जैसा की पता है। कि यह भगवद गीता कृष्ण की वाणी है। कृष्ण जो त्रिलोक का स्वामी है। कृष्ण जो मायापति है। कृष्ण जो विष्णु का अवतार है और धन की देवी लक्ष्मी जिसकी अर्धांगनी है। उस कृष्ण की यह वाणी जिसको झूठ मानना भी एक तरह से पाप मात्र होगा। हम उसी कृष्ण की वाणी भगवद गीता के बारे में बात करेंगे।

1 कर्म फल पाना है तो क्या करें (Bhagwad Geeta Chapter 4 Verse – 12)

ऐसा कौन नहीं है जो इस संसार में मेहनत नहीं कर रहा है। किन्तु क्या सभी को उसकी मेहनत का पूरा फल मिल रहा है। सच कहे तो नहीं। हिन्दू धर्म हर आशा और कामना के लिए एक अलग देवता का चयन किया गया है। जैसा संकट के वक्त हनुमान, धन के लिए लक्ष्मी या कुबेर, आरोग्य के लिए धन्वन्तरि, न्याय के लिए शनि इत्यादि।

“काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिम यजन्त इह देवता।
क्षिप्रं हिमानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।”

Bhagwad Geeta Chapter 4 Verse – 12

कहने का अर्थ बड़ा ही स्पष्ट है कि यदि आप को कुछ चाहिए और उसके लिए आप निरंतर प्रयासरत है और आप उससे सम्बंधित देवता का पूजन करें तो हमें वह चीज जल्दी प्राप्त हो जाती है जिसकी हमें कामना की है।

2 कौन है ईश्वर का प्रिय (Bhagwad Geeta Shlok 17 Chapter 12)

इस जीवन का उद्देश्य यदि देखा जाए तो सिर्फ एक है और वह ईश्वर की प्राप्ति। किन्तु मनुष्य इस लोक की मोह माया व चका चौंद में यह सब भूल जाता है। और याद भी रहे तो भी उसे पता नहीं होता। कि उसे ईश्वर कैसे मिलेंगे। आप खुद सोचिये एक तो यह कि आप ईश्वर से प्रेम करें और दूसरा यह कि ईश्वर आप से प्रेम करें। तो वह क्या है कि जिससे ईश्वर हमको प्रेम करें। सोचिए जिस मायापति की अर्धांगनी लक्ष्मी हो और वह मायापति जिससे प्रसंन्न हो जाये तो फिर बात ही क्या है। उसका तो स्वाभाविक रूप से जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त करने से कोई कैसे रोक सकता है भला।

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभ परित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।

Bhagwad Geeta Shlok 17 Chapter 12

कृष्ण कहते हैं कि जो ना किसी प्रकार से हर्षित होता है, न किसी से कोई द्वेष करता है, न किसी विषय पर शोक करता है, न कोई कामना करता है तथा जो शुभ अशुभ का त्याग करने वाला है ऐसा मनुष्य मेरा प्रिय है। अर्थात यदि आप मोह माया से ही बंदे हुए है। तो ईश्वर का प्रिय यदि बनना है तो बेवजह से दूसरों द्वेष रखना व बिना परिश्रम की कामना रखना छोड़ दे बस ईश्वर को समर्पित होकर कर्म करें।

3 कौनसे लोग किसका पूजन करते हैं (Bhagwad Gita Shlok 4 Chapter 17)

भारतीय संस्कृति में यह होता आया है कि हम किसी विशेष इच्छा के लिए विशेष देव का पूजन करते हैं। यदि प्राचीन हड़प्पा, मोहनजोदड़ों को देखे तो यह पता चलता है कि वे खेती के लिए सूर्य व इंद्र देव का पूजन करते थे। यहाँ इस श्लोक में भगवद गीता में बड़ी ही शानदार बात बताई गई है।

“यजन्ते सात्विका देवान्यक्षरक्षांसि।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये जयन्ते तामसा जनाः।।”

Bhagwad Geeta Shlok 4 Chapter 17

श्री कृष्ण कहते हैं कि जो पुरुष सात्विक होते हैं वे देवता का पूजन करते हैं जो पुरुष राजसी प्रवृति के होते हैं वे यक्ष व राक्षसों की पूजा करते हैं और जो पुरुष तामसी व आसुरी प्रवृति के होते हैं वे लोग प्रेत व भूतगणों की पूजा करते हैं। यहाँ यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि राजसी लोग वही लोग है जो वैभव रखते हैं और वे यक्ष का पूजन करते हैं। आप को धन के देवता कुबेर यक्ष ही हैं और उनको यक्षराज कहा जाता है।

4. सब कुछ आपका स्वभाव ही है

यहाँ कृष्ण ने वही बात कही है जिसकी वजह से संसार में कहीं बुक्स ऐसी लिखी गई जिनमें जीवन के रहस्यों को उजागर को करने वाली बात कहीं गई। कृष्ण ने इस रहस्य को बहुत पहले ही बता दिया है। जो आज के युग में सीक्रेट्स जैसी बुक्स के माध्यम से लेखकों ने बताया।

“न कर्तत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलं संयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।”

Bhagwad Geeta Chapter 5 Shlok 14

श्री कृष्ण यह कहते हैं कि मैं कुछ नहीं हूँ अर्थात स्पष्ट है कि ईश्वर इस संसार में अपनी तरफ से कुछ नहीं करता है। ना वह किसी का भाग्य बनाता है ना मिटाता है। ना ही वह उसका भविष्य लिखता है। ना वह उसके कर्मफल के संयोग की रचना करता है। अर्थात उसको उसके कर्म का फल मिलेगा या नहीं यह भी मैं तय नहीं करता। तो फिर सवाल यह उठता है कि आखिर यह सब कुछ कैसे तय होता है तो इस पर श्री कृष्ण ने बताया है कि यह सब कुछ मनुष्य के स्वभाव में ही छिपा है। यदि वह अच्छे की अपेक्षा करता है तो अच्छा होगा और यदि नहीं करता है तो नहीं होगा। जैसी मानसिकता वह रखेगा उसको जीवन में वैसा ही मिलेगा।

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5 नर्क के द्वार क्या है –

यह सत्य है कि इस जीवन के कर्मानुसार हमें नरक व स्वर्ग भोगना होता है। इसलिए श्री कृष्ण ने ऐसे पुरुष जो पुण्य का मार्ग अपनाना चाहते हैं और नरक से बचना चाहते हैं उनके लिए कहा है कि उनको इसके लिए सबसे पहले नरक के द्वार पर जाना ही क्यों है। उन्होंने गीता में नरक पहुँचाने वाली आदतों के बारे में बताया है।

“त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत।”

Bhagwad Geeta Chapter 16 Shlok 21

नरक के तीन द्वार माने गए हैं काम क्रोध और लोभ। अतः कृष्ण ने कहा है कि इन तीनों से दूर रहकर निष्काम रूप से मनुष्य को कर्म करना चाहिए। अपने सभी कर्मों को उसे केवल मुझे और मुझे समर्पित कर देना चाहिए। इस प्रकार ना केवल वह इन विकारों से दूर रहेगा। बल्कि वह सभी प्रकार के पाप से भी बच जायेगा। और उसे ना केवल इस जीवन में बल्कि उस जीवन में स्वर्ग का आनंद मिलेगा। क्योंकि ये विकार ही होते हैं जो जीवन में दुःख लेकर आते हैं। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Shlok in Hindi)

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6 तु केवल कर्म कर(Bhagwad Geeta Ke Shlok)

आप यह तो जानते ही है कि यह जीवन कर्म प्रदान हैं आप यदि कुछ कर सकते हैं तो केवल कर्म कर सकते हैं। कर्म के माध्यम से आप का जीवन बदलता है। इसलिए कृष्ण ने एक बात यहाँ कही है। कि तेरा अधिकार केवल और केवल कर्म करने में है। यहां तक कि यह सोचने में भी नहीं है कि तुझे कर्म का फल मिलेगा या नहीं। क्योंकि यह सब तेरे हाथ में नहीं है। कर्म का फल देना मेरे हाथ में है।

“कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचनः।
माँ कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि।।”

Bhagwad Geeta Chapter 2 Shalok 47

यह श्लोक बहुत कुछ बताता है यह बताता है कि तुम्हे निरंतर कर्म करते हुए रहना चाहिए। क्योंकि कर्म ही है जो तेरे हाथ में है तो फिर तु फल के बारे में सोचता ही क्यों है। जब यह पता है कि कर्मों का फल तेरे हाथ में नहीं है। यह अपने आप में बहुत प्रेरणादायी विषय है। जो कृष्ण हमें बतलाते हैं। इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए इस कर्म का फल क्या होगा। क्योंकि ऐसा सोचकर तु कर्म करने से रूक जायेगा। (भगवद गीता के रहस्य | Bhagwad Geeta Rahasya)

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7 बुद्धि का नाश कैसे होता है

हमारे जीवन में यदि हमें सम्मान, धन, प्रतिष्ठा चाहिए तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी बुद्धि अच्छे से कार्य करे। इसलिए कृष्ण बताया है कि हमें बुद्धि के नाश से बचना चाहिए। क्योंकि बुद्धि का पतन यदि होता तो व्यक्ति का भी पतन हो जाता है।

“क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिभृमः।
स्मृतिभृंशाद बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।”

Bhagwad Geeta Chapter 2 Shlok 63

श्री कृष्ण कहते है कि आपको क्रोध से बचना चाहिए। क्रोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि क्रोध से मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है और वह मानसिक रूप से दिवालिया हो जाता है जिसके कारण कहीं प्रकार के भटकाव विचार आते हैं। फलस्वरूप ज्ञान का नाश हो जाता है। और ज्ञान के साथ ही बुद्धि का भी नाश हो जाता है और वह अपना सम्मान मर्यादा खो देता है। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Shlok in Hindi)

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8 जिस देवता का पूजन उसी के प्रति स्थिर कर देना –

हिन्दू धर्म में आपने देखा होगा। लोग अलग अलग देवता का पूजन किया करते हैं। कोई शिव की साधना करता है तो कोई बजरंगबली का भक्त है। कोई है जो लख्मी का पुजारी है कोई दुर्गा की सेवा कर रहा है, कोई सरस्वती की साधना कर रहा है। ऐसे में श्री कृष्ण बड़ी ही महत्वपूर्ण बात इन सभी प्रकार के भक्तों को को कहीं है।

“यो यो यां यां तनुं भक्त श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां शृद्धाम तामेव विदधाम्यहम।।”

Bhagwad Geeta Chapter 7 Shalok 21

कृष्ण कहते हैं कि तुम जिस देवता या देवी का पूजन करोगे मैं उसी के प्रति तुम्हे आशवस्त बना दूंगा। तुम्हारा विशवास उसी के प्रति दृढ कर दूंगा। तुम फिर उसी देवी या देवता को समर्पित हो जाओगे। तुम्हे तुम्हारे जन्म के अंत के बाद वही मिलेगा। क्योंकि मैं सभी में वास करता हूँ और मैं ऐसा ही करता हूँ। (भगवद गीता के रहस्य | Bhagwad Geeta Rahasya)

9 कौन कर्मफल में लिप्त नहीं होता है

कृष्ण ने मन की बड़ी ही जबरदस्त महिमा बताई है। कृष्ण ने कहा है कि इस मन को काबू करना इतना आसान नहीं है यह निरंतर अभ्यास ही संभव है। और जिसका मन वश में हो जाता है वह कुछ भी कर सकता है और कुछ भी पा सकता है।

“योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।”

Bhagwad Geeta Chapter 5 Shlok 9

कृष्ण कहते हैं कि तुम्हे जनम मरण के बंधन से मुक्त रहना है तो तुझे कर्मफल के बंधन से मुक्त होना होगा। इसके लिए जरूरी है कि तु अपने मन को अपने वश में कर ले। अपनी सभी इन्द्रियों को जीतकर जितेन्द्रिय बन जा। इस प्रकार तेरी आत्मा में परमात्मा का वास होगा और तु कर्म फलों में लिप्त नहीं होगा क्योंकि तेरी कर्मफलों में किसी भी प्रकार की कोई आसक्ति नहीं रहेगी। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Shlok in Hindi)

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10 पापों से बाहर कैसे निकला जाये

हर व्यक्ति के मन में यह सवाल होता है कि उसने तो ये पाप किये हैं तो क्या ईश्वर उसको क्षमा कर देगा। क्या उसे उसके पापों के लिए नरक मिलेगा। आखिर उसका परलोक कैसा होगा। इस पर भी कृष्ण ने बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कही है।

“अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृतमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।”

Bhagwad Geeta Chapter 8 Shlok 36

कृष्ण ने कहता है हो सकता है तु पापियों में भी सबसे ज्यादा पाप करने वाला हो। यदि ऐसा है तो भी तेरा उद्धार हो जायेगा। यदि तु ईश्वरीय ज्ञान रुपी नौका का सहारा लेगा। तो तु सभी प्रकार के पाप कर्म से मुक्ति पा लेगा और मुझे प्राप्त होगा। ईश्वर ने बताया है कि चाहे कोई कितना भी पापी हो किन्तु ईश्वर कभी किसी से कोई घृणा नहीं करते हैं उनके लिए सभी समान हैं। (भगवद गीता के रहस्य | Bhagwad Geeta Rahasya)

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11 अंत समय में मेरा स्मरण मुझे प्राप्त करेगा –

कृष्ण कहते हैं जो व्यक्ति मेरा पूजन कर रहा है। या मेरे प्रति सोच रहा है। या फिर वह व्यक्ति कितने ही बुरे कर्म कर रहा है। या फिर वह कितना भी बड़ा पापी हो। किन्तु यदि वह अपने अंतिम समय में मेरा स्मरण कर लेता है तो वह मुझे प्राप्त होता है। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Shlok in Hindi)

“अंतकाल च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः।।”

Bhagwad Geeta Chapter 8 Shalok 5

कहने का अर्थ है कि आप ईश्वर का जीवन भर ध्यान करते रहो किन्तु यदि अंतिम समय में आप ईश्वर को याद ना कर किसी और का ध्यान करते हैं तो आप ईश्वर को प्राप्त ना हो कर उसी को प्राप्त करते हैं जिसका आप ध्यान करते हैं। जैसे यदि मृत्यु के अंतिम समय में आप किसी हिरन को ध्यान करते हैं तो आप हिरण के रूप में ही जनम लेंगे।

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भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Shlok in Hindi

इस प्रकार यदि हम देखे तो भगवद गीता ऐसी बुक है। जिसमें इस जीवन का और इस संसार का सारा रहस्य छिपा है। इसके हर एक श्लोक में बड़े बड़े शोध किये जा सकते हैं। कृष्ण ने जो बात बताई है। वही इस संसार में वास्तव में होगा है। क्योंकि कृष्ण स्वयं में ईश्वर है। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Ke Shlok)

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कृष्ण ने इस धरती पर कहीं अवतार लिए हैं और वह आगे भी इस धरती पर अन्य अवतार लेगा। कृष्ण का अंतिम अवतार कल्कि होगा। जो नारायण व शिव का संयुक्त अवतार होगा। आज के परिपेक्ष्य में देखा जाये तो कृष्ण की वाणी यह गीता बड़ी ही अद्भुत है। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Ke Shlok)

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यदि हम कृष्ण के अनुसार इस जीवन को देखे तो हम बेवजह ही दुखी है। और हमारे दुखी होने का कारण हमारा मन है। यदि हम मन को अपने वश में कर लें तो यह बात भी सच है कि हम अपने दुखो पर भी विजय प्राप्त कर लेंगे। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Ke Shlok)

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दुखों और तकलीफों पर विजय माने व ईश्वर को पाने का मार्ग ही भगवद गीता है। यह यकीनन दुनिया की सबसे अनमोल पुस्तक है। जिसको जो पढ़ ले उसका जीवन चमकना स्वाभाविक है और जो इसको अपना लें उसका यह लोक और परलोक दोनों सुखमय बन जाये। (भगवद गीता के श्लोक | Bhagwad Geeta Ke Shlok)

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