सांप्रदायिक दंगों पर कविता | हिंसा | दिल्ली | ग़ज़ल | – Communal Riot Poem Hindi – यह रचना सांप्रदायिक दंगो व हिंसा पर आधारित है।
सांप्रदायिक दंगों पर कविता
बड़े ही भयावह मंजर सामने आने लगे हैं।
इंसान इंसान को देख कतराने लगे हैं।।
लगे कतराने क्योंकि आँखों में उतरा खून।
जो दोस्त थे अभी अभी दुश्मन बताने लगे हैं।।
बताने लगे कैसे जलती घर दुकानों की होली।
फिर मनाने को एक दूजे का रक्त बहाने लगे हैं।।
बहाने को देखने रक्त का रंग भगवा है या हरा।
डॉक्टर देखो नादाँ रक्त लाल ही चढाने लगे हैं।
चढ़ आये कहीं दंगाई लुटने आबरू मचाने मातम।
तोड़ के घर की दीवारें लोग खुद को बचाने लगे हैं।।
बचाने में खुद को चींखे चिल्लाहट दर्द सब खो गया ।
ऐसे ही आएगी शान्ति जिम्मेदार यह समझाने लगे हैं।।
दिल्ली हिंसा पर कविता
नारों और शोर से गूंज उठा आसमान।
मार काट मचाने को लोग बन बैठे हैवान।।
हैवानों ने जलाई दूकान तो किसी का मकान।
देखते देखते शहर देखो बना दिया शमशान।।
शमशान से अब उठता धुंआ और कही सिसकियाँ।
कैसी यह हिंसा कि इंसानियत खो गई पहचान।।
खोकर के पहचान, आँखों में जलाके अंगारे।
बनानी चली है अपना भारत महान।।
महानता दया प्रेम में कौन इनको समझाये।
खोया हुआ सौहार्द पाना नहीं आसान।
आसान है तोड़ फोड़ और आगजनी करना।
मुश्किल है तो देना किसी को मुस्कान।।
मुस्कान फैलाओ ताकि खुश हो तुमसे भगवान्।
खुशियां ही बनाएगी प्यारा प्यारा हिन्दुस्तान।।
कवि – लोकेश इन्दौरा
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Communal Riots Poem in Hindi
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