महंगाई पर कविता : 3 Mehangai Par Kavita | Inflation Hindi Poem – यहाँ पर महँगाई पर तीन मजेदार कवितायेँ प्रस्तुत है। – महंगाई नाम की डायन, महंगाई रे महंगाई, महंगाई से जनता त्रस्त।
महंगाई पर कविता
महंगाई नाम की डायन
महंगाई नाम की डायन लुट रही संसार।
नोचने का जनता का मुंह नाख़ून हैं तैयार।।
नाख़ून बने इसके देखो सरकारी नीति तंत्र से।
जनता भगाने में जुटी देशभक्ति के मंत्र से।
देशभक्ति के नारे लगाकर भी सह रहे देखो दंश।
ले राष्ट्र प्रेम का ही सहारा राजनीति करे प्रपंच।।
प्रपंच देखो जनता भी दे सरकार का पूर्ण साथ।
क्योंकि आम कोई नहीं सब बने राजनीतिक बिसात।।
राजनीतिक बिसात का साधन मीडिया संग अखबार।
खबरों के नाम पर कर रहे पक्ष विपक्ष का व्यापार।।
कर रहे व्यापार सेलिब्रिटी पर देते ध्यान।
आम जन का आम मुद्दा हुआ रसीला पान।।
हुआ रसीला पान अब खबरें जो मन को भाये।
कौन सरकार से उलझे कौन विपक्ष को जगाये।।
विपक्ष को जगाये, उल्टा सोशल मीडिया थपकी दे सुलाये।
जनता में कुछ खुद कांग्रेसी, कुछ भाजपाई कह इतराये।।
इतरा रहे साथ में देखो पेट्रोल संग अन्य सामान।
आखिर जनता की औकात से ज्यादा उनका दाम।।
है उनका दाम क्योंकि सब बने राजनीतिक हवाओ के मजदूर।
जिन युवाओं को बोलना था लगा बैठे किसी पार्टी का सिंदूर।।
अब लगाया सिन्दूर तो चूड़ियाँ पहनना स्वाभाविक।
पार्टियों की प्रशंसा में राष्ट्रवाद रहा देखो बिक।।
राष्ट्रवाद अब चिपका नेताओं की पहचान से।
देशभक्ति भी ना बचा सके उनको इस अज्ञान से।
अज्ञानता ऐसी ना देख पा रहे बेरोजगारी महंगाई।
बस देखे टीवी, जिसमें बस राजनीतिक लड़ाई।।
लड़ाई की नौटकी ऐसी बगुला नेता दिखे देश हितेषी।
सब शांति से यही देखने में बिज़ी तो जी महंगाई कैसी।।
—– Lokesh Indoura
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Mehangai Par Kavita
महंगाई रे महंगाई
महंगाई रे महंगाई
फैली हो सर्वत्र।
पर क्यों ना देती दिखाई
ढूंढे जब यत्र तत्र
टीवी में नहीं ब्रेकिंग न्यूज
अख़बारों के उड़े फ्यूज
जनता देख देख हैरान
आखिर किसने दबायी न्यूज
कोई तो जनता को बताये
पेट्रोल क्यों आग लगाये
रोज मर्रा का सामान भी
दूर से क्यों लाल आँख दिखाये
मध्यमवर्ग हो रहा बेहाल
गरीब और भी फटेहाल
बेरोजगारी में दोगली चाल
आखिर ऐसे रखे सरकार ख्याल
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——- Lokesh Indoura
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Mehangai Poem in Hindi
महंगाई से है जनता त्रस्त
महंगाई से है जनता त्रस्त।
देख राजनीति हो रही मस्त।।
मस्ती के गोल गप्पे मीडिया खिलाये।
फालतू ख़बरों से सिर भी पकाये।।
ताकि दिमाग से आम मुद्दा रहे दूर।
अवश्य बिकाऊ जो छिपाने को मजबूर।।
राजनीति के शोर में हो गया खामोश।
जनता की सहने की आदी फिर किसे दोष।।
होशवाले देख ले रहे सिर्फ ट्वीट की चुस्की।
देख गरीबी ले रही इस रवैये से सिस्की।।
अब राजनीति का अर्थ लूट खसोट वोटों की।
क्या परवाह लोकतंत्र में आम जन के नोटों की।
अब बाजार गए तो मतलब पहुंचे कसाई खाना।
कटेगा जेब आटे दाल से ले इलायची की दाना दाना।।
वस्तुओं का मूल्य पूछ चुप हो जाती बड़बोली जुबान।
कसम खाती देख अब फिर ना आउंगी तेरी दूकान।।
पर बढ़ती कीमतें दूकान और दुकानदार के ऊपर नहीं।
यह तो अटके हैं कुछ अयोग्य नेताओं के निर्णय पर कहीं।।
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——– Lokesh Indoura
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महंगाई पर कविता 2020
महंगाई निरंतर बढती जा रही है। पेट्रोल हो या अन्य सामान सबके दाम आसमान छु रहे हैं। महंगाई की सीधा असर आम आदमी की जेब पर होता है। Mehangai Poem in Hindi | Mehangai Par Kavita Read – कर्ज पर कविता
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सबसे बुरी हालत उस व्यक्ति की होती है। जो दिहाड़ी मजदूर हैं। देश में कुछ लोगों की स्तिथि तो यह है। जिस दिन उन्हें काम मिलता है। उसी दिन वो खाना खाते हैं। महंगाई पर कविता | Mehangai Poetry in Hindi | महंगाई कविता Read – Hindi Funny Status
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महंगाई बढ़ने से भले ही देश आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ होती हो। किन्तु आम जन को काफी तकलीफ उठानी पड़ती है। महंगाई सीधा सीधा जनता की जेब में डाका है।Read – महंगाई से बचने के 10 उपाय
सरकार और विपक्ष दोनों को इस स्तिथि पर ध्यान देना चाहिए। देश में इस तरह वस्तुए निरंतर महँगी होना वाकई काफी दुखद है। Watch – Mobile Funny Poem
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वैसे तो देश में कोई कोई नेता ट्वीट कर महंगाई का रोना जरूर रो देता है। लेकिन कोई विशेष विरोध इसके खिलाफ दिखाई नहीं दे रहा है। Mehangai Poem in Hindi | Mehangai Par Kavita Go To – Home Page Maskaree