आप युवा हृदय सम्राट किसी को कहेंगे यह आप की इच्छा है किन्तु वास्तव में हमारे देश का यदि कोई वास्तविक यूथ आइकॉन हो सकता है तो वह केवल श्री स्वामी विवेकानद जी ही हो सकते हैं उन्हीं के जीवन और जीवन वृतांत पर स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी | Biography Vivekananda है। यहाँ उनका जीवन और उनके जीवन के कुछ वृतांत आपके सामने प्रस्तुत है।
यहाँ स्वामी विवेकांनद जी की रोचक कहानियाँ व जीवनी प्रस्तुत है।
स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी
स्वामी विवेकानंद जी का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। नरेंद्र नाथ दत्त 12 जनवरी 1963 को एक आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में जन्मे थे। बचपन में माता पिता द्वारा उनका वैसे नाम वीरेश्वर रखा गया था। किन्तु फिर धीरे धीरे प्रचलन में नरेंद्र नाम से ही वे अपने परिवार में जाने गए। उनके दादा जी श्री मान दुर्गाचरण दत्त संस्कृत व फ़ारसी भाषा के बड़े ही बेहतरीन विद्वान थे और पिता विश्वनाथ दत्त हाई कोर्ट में वकील थे।
नरेंद्र नाथ अपने बाल्यकाल से बड़े मेधावी थे। वह पढ़ने में होशियार भी थे और साथ में नटखट भी। 1871 में 8 वर्ष की उम्र में उन्होंने ईश्वर चंद्र विद्या सागर नामक एक मेट्रो पोलिटन इस्टीटूट में दाखिला लिया और 1877 तक यहाँ पढाई की। 1879 में वे अपने माता पिता के साथ कलकत्ता में थे और वहीँ से उन्होंने अपनी मेट्रिक की परीक्षा पास की।
मेट्रिक पास करने के बाद ही उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश लिया और भरपूर यूरोपियन दर्शन का अध्ययन किया। नरेंद्रदत्त बचपन से आध्यात्म में रूचि रखते थे। वे बचपन से ही ईश्वर को जानने के इच्छुक थे। वे बड़े ही जिज्ञासु और उत्साही प्रवृति के विद्यार्थी थे। उनके सभी साथी और गुरुजन उनके प्रश्नों से चौंक जाते थे। वे बड़े तर्कशील भी थे। उनके साथी भी उनके तर्क का लोहा मानते थे। किन्तु उनके सवालों का जवाब उन्हें नहीं मिल पाता था।
1881 में उनकी पहली बार राम कृष्ण परमहंस से मुलाकात हुई। राम कृष्ण परमहंस उस समय माँ काली के मंदिर के प्रमुख पुजारी थे। नरेन्द्रदत्त ने उनसे सवाल किया क्या आप ने ईश्वर को देखा है। जवाब में परमहंस ने कहा हाँ देखा है जैसे अभी तुम्हे देख रहा हूँ। उनके इस सवाल का जवाब नरेन्द्रदत्त को बड़ा ही प्रभावित किया। फिर जिज्ञासु प्रवृति के नरेंद्र ने ढेरों प्रश्न राम कृष्ण परमहंस से किया और हर सवाल का जवाब उन्होंने संतुष्टिप्रद रूप से मिला। पहली बार नरेंद्र को कोई ऐसा व्यक्ति मिला जो उनकी जिज्ञासा को शांत कर सकता था और नरेंद्र ने उनको अपना गुरु बना लिया।
Swami Vivekanand Life Story in Hindi
नरेंद्र बड़े ही गुरुभक्त और हमेशा गुरु सेवा में लीन रहते थे। 1886 में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस जी का निधन हो गया। उन्होंने समाज में पाया कि समाज के अंदर बहुत भेदभाव है। वह जात पात और छुआछूत के विरोधी थे। नरेंद्र धार्मिक पुस्तक श्री मदभगवद गीता को पढ़ा करते थे। उन्होंने भगवद गीता के अतिरिक्त भी कहीं धर्म ग्रन्थ पढ़े।
वे हमेशा निम्न श्रेणी के लोगों के उत्थान की बात किया करते थे। उनका मानना था कि यदि देश को आगे ले जाना है उन्हें निचले तपके के लोगों को ऊपर उठाना पड़ेगा। तब ही भारत मजबूत बन पायेगा। 1890 से स्वामी विवेकानंद ने भारत भ्रमण शुरू किया। इस दौरान वे राज महलों से लेकर झोपड़ियों सभी जगह रुके। कहीं स्थानों पर उनका स्वागत हुआ और उनके ज्ञान की प्रशंसा भी हुई। उन्होंने पाया कि भारत में धर्म को लेकर अंधविश्वास भी बहुत है तथा जातिगत भेदभाव भी बड़ी मात्रा में है।
वे अपनी इस यात्रा के साथ अपना कमंडल और दो पुस्तकें श्री मदभगवद गीता और द इम्मीटेशन ऑफ़ क्राइस्ट साथ रखते थे। उन्होंने कहीं धार्मिक ग्रंथों को पढ़ा और हिन्दू धर्म को जाना और उसकी समय व परिस्तिथि के अनुसार व्याख्या की। सभी उनके आध्यात्मिक व बौद्धिक ज्ञान से काफी प्रभावित थे।
1893 में उन्होंने शिकागो धार्मिक सम्मलेन में शामिल होने का निर्णय लिया और वे यूरोप घूमते हुए अमेरिका पहुंचे। वहां उन्हें बोलने के लिए केवल 2 मिनिट का समय दिया गया किन्तु जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो सभी उनके ज्ञान और विद्वता के कायल हो गए। उनके शुरूआती पंक्तियाँ ही सभी का ध्यान आकर्षित करने वाली थी। उन्होंने उस धर्म सभा में कहा – “मेरे अमेरिकी भाइयों व बहनों..,,”
वे कुछ दिन अमेरिका रहे वहां कई अमेरिकी भाई बहन उनके अनुयायी बन गए। 1884 को वहीँ न्यूयार्क में उन्होंने वेदांत समिति की स्थापना की। वहां के हार्वर्ड कॉलेज में उन्होंने कहीं धार्मिक भाषण और संवाद किये। उन्होंने इस दौरान बीच बीच में पेरिस की भी यात्रा की। 1896 में वे फिर अमेरिका से भारत आ गए। आने के बाद भारत में उनका भरपूर स्वागत हुआ।
Biography of Swami Vivekananda in Hindi
मात्र 39 वर्ष का स्वामी विवेकानंद जी का जीवनकाल रहा किन्तु अपने इस छोटे से जीवनकाल में विवेकानंद ऐसी अमिट छाप छोड़ गए कि हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गये। उनका आध्यात्मिक ज्ञान, दर्शन व शिक्षा शताब्दियों तक आने वाली पीढ़ी का मार्दर्शन करेंगे।
रविंद्र ठाकुर तो कहते हैं कि यदि भारत के दर्शन करना चाहते हैं तो आप स्वामी विवेकानंद को पढ़िए और सही भी उनके अंदर भारत की संस्कृति की छवि बसती है। विवेकानंद जी ने सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में देखा और भारतीय सांस्कृति का तो मूलमंत्र रहा है वसुधैव कुटुंबकम।
अमेरिका से आकर स्वामी विवेकानद ने नव भारत को ललकार। उन्होंने युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित किया। महात्मा गाँधी को आजादी की लड़ाई में देश को इकट्ठा करने के लिए उनसे ही प्रेरणा मिली। विवेकानंद ने कहा उठो जागो और दूसरों को भी जगाओ और इस देश को विकास के पथ पर ले चलो। यहाँ से जातिगत और धार्मिक भेदभाव को दूर कर दो।
स्वामी विवेकानंद के हिन्दू धर्म की मुख्य बात यह थी कि उनका धर्म किसी मंदिर मस्जिद या किसी पूजा पद्धति से बंधा नहीं था। वे एक उपासक थे किन्तु साथ में स्वतंत्र रूप से सोचने वाले व्यक्ति थे। वे कहते थे धार्मिक उपासना करने से अच्छा है भूखे, शोषित और वंचितों की सहायता करना।
जीवन के अंतिम समय में स्वामी विवेकानंद ने शुक्ल यजुर्वेद की रचना की। 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद जी ने अपना रूटीन वही रखा। वे हर बार की तरह 2 से 3 घंटे ध्यान अवस्था में गए और हमेशा के लिए समाधी को प्राप्त हो गए। बेलूर में गंगा नदी के किनारे चन्दन की लकड़ियों पर उनकी चिता को सजाया गया है और उनको अंतिम विदाई दी गई। इसी गंगा नदी के दूसरी ओर उनके गुरु का अंतिम संस्कार हुआ था। बाद में वहां उनकी याद में एक मंदिर भी बनवाया गया।
स्वामी विवेकानंद की जीवनी
स्वामी विवेकानंद जी की विदेश यात्रा की रोचक कहानियाँ
विवेकानन्द जी आँखे बंद करके अमेरिका की यात्रा में चले गए जैसे ही उन्होंने अमेरिका में धार्मिक सभा के बारे में सुना था उन्होंने तुरंत निश्चित कर लिया था। उनके किसी शिष्य, दोस्त, साथी, पंडित, मंत्री और महाराजा ने इसमें आने वाले किसी मुश्किल के बारे में कभी नहीं सोचा था।
उनके पास उस धर्म सभा के लिए कोई योग्यता प्रमाण पत्र नहीं था। इसके बावजूद वह केवल इस विश्वास के साथ चले गए कि जब ईश्वर का समय आएगा तो वह वहां उपस्तिथ हो जायेंगे। खेतड़ी के महाराजा उन उनको जहाज का टिकट और विवेकानंद जी के मना करने के बावजूद एक सुन्दर तड़क भड़क वाली पोशाक उनको दी। ना तो विवेकानंद ने और ना ही किसी अन्य ने वहां की जलवायु परिस्तिथि और रिवाजो के बारे में विचार किया।
वह 31 मई 1893 को मुंबई से रवाना हुए और सीलोन, पेनांग, हांगकांग उनके रास्ते पर आये। फिर उन्होंने केंटन और नागासाकी की यात्रा की। फिर उन्होंने थल से योकोहामा, ओसाका, क्योटा और टोकियो की यात्रा की। योकोहामा से वैन्कोवर जाने के बाद वह ट्रैन से शिकागो पहुंचे। Read America Speech – Vivekananda Speech and 1893 Speech in Chicago
इस यात्रा के दौरान हर इक जगह उनके लिए अजीब और आश्चर्यचकित करने वाली थी। उन्होंने दक्षिणी और पश्चिमी विश्व के ऐसे धन शक्ति और आविष्कारी प्रतिभा की कभी कल्पना नहीं की थी। लगभग 12 दिन तक इस नए संसार ने विवेकानंद जी की आँखों को उत्सुक बनाये रखा।
वहाँ पहुँचने के कुछ दिन बाद वह शिकागो के सूचना केंद्र पहुँच गये और उन्हें जानकर धक्का लगा कि संसद सितम्बर के पहले सप्ताह में नहीं खुलेगी और प्रतिनिधि के रूप में पंजीकृत करवाने के लिए भी उन्हें काफी देर हो गई है। इतना ही नहीं बिना किसी आधिकारिक परिचय के उनका पंजीकरण भी वहां मुश्किल था। इस बात से वह पूर्णतया अनजान थे।
Swami Vivekanand Parichay
उनके पास किसी आधिकारिक संस्था का कोई विश्वसनीय प्रमाण पत्र नहीं था और उनके पास पैसे भी लगभग समाप्त होने को आये थे। वह अमेरिका की संसद कांग्रेस के खुलने का इंतज़ार नहीं कर सकते थे। उन्होंने मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में अपने दोस्तों को सहायता के लिए तार किया और प्रार्थना की। कि कोई आधिकारिक धार्मिक संस्था उन पर कृपा करे। लेकिन किसी संस्था ने उनकी सहायता नहीं की। अपितु एक संस्था के अध्यक्ष ने जवाब में लिखा –
‘इस दुष्ट को सर्दी से मरने दो’
लेकिन यह दुष्ट ना तो सर्दी मरा ना ही इसने हिम्मत हारी। बल्कि इसने स्वयं को ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया। उनसे अपने कुछ डॉलर संचित रखने के बजाय बोस्टन की यात्रा पर खर्च किया और भाग्य ने उसका साथ दिया। भाग्य हमेशा उनकी मदद करता है जो खुद की मदद करना जानते हैं।
बोस्टन में एक ट्रैन में यात्रा करने के दौरान उसने एक महिला साथी ट्रैवलर से बात की। वह महिला एक धनाढ्य महिला थी। उस महिला ने स्वामी जी से आध्यात्म से जुड़े कहीं सवाल किये और स्वामी जी द्वारा दिए जवाब से वह महिला काफी प्रभावित हुई। इस महिला ने विवेकानंद जी को अपने घर पर बुलाया और एक यूनानी साहित्य प्रेमी प्रोफेसर जे एच राइट से उनका परिचय करवाया।
प्रोफेसर भी उस युवा हिन्दू से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रस्तुतिकरण हेतु धर्म सभा के अध्यक्ष को पत्र लिखा और साथ ही एक मुफ्त यात्रा टिकट भी विवेकानंद को उपलब्ध करवाया। इससे विवेकानंद जी की मुश्किलें काफी हद तक कम हो गई।
किन्तु अभी भी स्वामी जी मुश्किलें पूर्ण रूप से कम नहीं हुई थी। जैसे ही विवेकानंद बोस्टन से शिकागो पहुंचे उन्होंने पाया कि उनके पास से उस सभा का पता खो चूका है। वह नहीं जानते थे कि उनको कहाँ जाना है। नाही एक काले व्यक्ति की वहां कोई मदद करने वाला था। स्टेशन पर उन्होंने एक बॉक्स देखा और वहीँ पूरी रात उन्होंने सोकर गुजारी।
स्वामी विवेकानंद की जीवनी
सुबह फिर एक सन्यासी के समान धर्म सभा का रास्ता खोजने को निकले। लेकिन मानो यह शहर उनको सभा का रास्ता दिखाने को तैयार ही नहीं था। कुछ घरों से उनको बहुत बुरी तरह अपमानित होना पड़ा। किसी ने उनके चेहरे के सामने ही अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया।
लम्बे समय तक भटकने के बाद वह एक घर की खिड़की के सामने बैठ गए। उस खिड़की से एक विधवा औरत ने उनको नोटिस किया और पुछा क्या वह धर्म सभा में सम्मिलित होने वाला प्रतिनिधि है। उस महिला ने विवेकानंद जी को अंदर बुलाया और वहां कुछ देर विश्राम करने के बाद विवेकानंद उस महिला के बताये अनुसार धर्म संसद के रास्ते पर निकला पड़े।
धर्म संसद में ख़ुशी ख़ुशी उन्हें एक प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया गया और विवेकानंद जी को अन्य प्रतिनिधियों के साथ बैठा दिया गया। किन्तु विवेकानंद की साहसी यात्रा का अंत अभी नहीं हुआ था। भाग्य ने यहां भी उनके साथ न्याय नहीं किया। एक नजर से देखे तो वह वहां मौजूद लोगों में एक स्वतंत्र बुद्धिमान व्यक्ति थे।
11 सितम्बर 1893 को संसद का पहला सत्र शुरू हुआ। यहाँ भारत से ब्रह समाज के मुखिया के रूप में प्रताप चंद्र मजूमदार थे तथा उनके साथ में बम्बई से नागरकर भी थे। जो कि भारतीय शोध पर आख्यान देने वाले थे। धर्मपाल जो सीलोन के बुद्धिज़्म को प्रस्तुत कर रहे थे और चक्रवर्ती जो ऐनी बेसंट की थियोसोफिकल सोसाइटी को प्रस्तुत कर रहे थे।
यहाँ विराजमान सभी लोग किसी ना किसी धर्म या धार्मिक संस्था का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जबकि युवा विवेकानंद किसी धर्म का नहीं या यूँ कहे सब का प्रतिनिधित्व कर रहा था। यह पहला अवसर था जब विवेकानंद को सबके सामने बोलना था। हर किसी ने एक अपने धार्मिक उदबोधन को प्रस्तुत किया।
Swami Vivekananda Life Story in Hindi
घंटों इंतज़ार करने के बाद स्वामी विवेकानंद की बारी आती है किन्तु इस पर समय की पाबंदी लगा दी गई है उन्हें केवल 2 मिनट का समय दिया गया। लेकिन जैसे उन्होंने बोलना शुरू किया तो वह सब को आश्चर्य चकित किया अब तक के सभी ठन्डे भाषणों में यह बड़ी ही जोशीली और आग लपट जैसी आवाज थी। जिसके प्रथम शब्दों ने ही पूरे विश्व की आत्मा को झंकझोर दिया। उनके प्रथम शब्द थे – “मेरे अमेरिकी भाइयों व बहनों ——-“
उन्होंने पहली ही बार में बता दिया ईश्वर इस संसार को कैसे देखता है। बता दिया कि सारा संसार एक परिवार है उनके शब्दों में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना दिखी। उन्होंने धर्म संसद एक औपचारिक तरीके को उतार फेंका। उनके इस शब्दों को सुनने को मानों सारा सदन इंतज़ार कर रहा था। उन्होंने प्रथम शब्द में ही धार्मिक भावना को बता दिया और ऐसी धार्मिक भावना जिसमें सारा संसार एक रूप में निरूपित होता है। जो इस संसार में सभी को ईश्वर की संतान के रूप में देखता है। जिसमें कोई भेदभाव नहीं है।
उन्होंने हिन्दू धर्म को धर्मों की जननी के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने भगवद गीता के रूप में सबको वहां सम्बोधित किया वहां बड़े बड़े ग्रन्थ रखे थे उनके बीच एक छोटी सी पुस्तक श्री भगवद गीता सभी को उपहास की विषय लग रही थी। उन्होंने भगवद गीता की दो पंकितयों को वहां अपने शब्दों में कहा –
1 – इस संसार में जो कोई भी किसी भी प्रकार से मेरे पास आता है मैं उसी प्रकार से उसके पास पहुँच जाता हूँ।
2 – सभी लोग रास्तों पर संघर्ष कर रहे हैं और उनके इन रास्तों का अंत में ही हूँ।
इस धर्म संसद में प्रत्येक व्यक्ति ने अपने धर्म के बारे में बताया। किन्तु विवेकानंद ने सम्पूर्ण धर्म के बारे में बताया और सभी धर्मों को अपने धर्म के अंदर समाहित कर लिया। उस वक्त ऐसा लगा मानो स्वयं उनके गुरु राम कृष्ण परमहंस उनके मुख से वहां बोल रहे हों। सम्पूर्ण धर्म संसद ने उस युवा प्रतिभा और भारतीय आध्यात्म का उत्साहपूर्ण रूप से स्वागत किया।
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Swami Vivekananda Biography in Hindi
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाप्रद कहानियाँ
स्वामी विवेकानंद की कहानी – ‘लक्ष्य से नहीं भटकना’ – ( Swami Vivekananda Life Story in Hindi )
एक बार स्वामी विवेकानंद जी अपने आश्रम में ध्यानमग्न थे जैसे ही वे आँखे खोलते हैं तो सामने एक सज्जन को पाते हैं। जो कि बड़ी ही आशापूर्वक स्वामी जी के पास आया था। वह व्यक्ति विवेकानंद से सवाल करता है कि स्वामी जी मैं खूब मेहनत की किन्तु इतना परिश्रम करने के बाद भी मुझे सफलता नहीं मिल रही है। मुझे अपनी मेहनत का फल क्यों नहीं मिल रहा है।
स्वामी जी ने उसकी बात को ध्यान से सुना। उसी वक्त उन्होंने देखा कि उनका एक शिष्य कुत्ते को टहला रहा है। अपने उस शिष्य को अपने पास बुलाया और उस सज्जन से कहा श्री मान में मैं आपके प्रश्न का जवाब आपको अवश्य दूंगा किन्तु आप पहले इस कुत्ते को कुछ दूरी तक घुमाकर मेरे पास लाइये। तब तक में आपके समस्या के समाधान का हल ढूंढता हूँ।
इतना कहने के बाद वह सज्जन उस कुत्ते को घुमाने के लिए निकल पड़ा और तक़रीबन घंटे भर बाद वापिस स्वामी विवेकानंद जी के पास आता है। स्वामी विवेकानंद जी पाते हैं कि वह व्यक्ति सीधा शांत खड़ा है तथा कुत्ता थका हुआ लग रहा है वह हांफ भी रहा है। उस व्यक्ति ने फिर से स्वामी जी से पुछा – स्वामी जी क्या आपको मेरी समस्या का समाधान मिला। यह कहने पर स्वामी जी ने कहा समाधान तो तुम खुद ढूंढ लाये हो। इस पर उस सज्जन ने पुछा वह कैसे स्वामी जी।
इस पर स्वामी जी ने उत्तर दिया देखो इस कुत्ते को और स्वयं को देखो। यह कुत्ता कितना हांफ रहा है जबकि तुम बिलकुल शांत हो। मुझे क्या इसका कारण बताओगे। इस पर सज्जन बोला हां स्वामी जी अवशय। जब मैं इस कुत्ते को घुमा रहा था तो सीधा सीधा चलता गया। किन्तु यह कुत्ता जहाँ भी कुछ आकर्षित करता वही दौड़कर चला जाता फिर दौड़कर वहां से वापिस आता और फिर आगे चलने पर इधर उधर यह भटक जाता।
Swami Vivekananda Ki Jivani
अब स्वामी जी ने कहा – प्रिय ठीक इस प्राणी के समान ही तुम भी इधर उधर भटक रहे हो। तुम्हे पता था तुम्हे कहाँ जाना है और किस दिशा में जाना है किस रास्ते से जाना है किन्तु यह बात इस कुत्ते को पता नहीं थी। इसलिए जहाँ भी कुछ उसे रोचक लगता। यह उसी ओर चला जाता। यदि तुम भी अपना लक्ष्य निश्चित कर लोगे और पूर्ण रूप से उस कार्य में जुट जाओगे तो तुम आसानी से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लोगे वरना इस प्राणी के समान इधर उधर भटक जाओगे और अंत में थककर हार मान लोगे।
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कहानी – नारी का मन से आदर – ( Swami Vivekananda Biography in Hindi )
स्वामी विवेकानंद जी ने अल्प समय में ही देश विदेश में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। जब वह विदेश में थे तो एक बहुत ही सुन्दर युवती उनके पास आती है और स्वामी जी से कहती है कि मैं आपको अपना पति बनाना चाहती हूँ।
इससे मुझे एक आपके ही सम्मान एक तेजस्वी और गौरवशाली पुत्र की प्राप्ति होगी। इस पर विवेकानंद जी ने उस महिला से कहाँ देवी मैं तो एक सन्यासी हूँ. मेरा पारिवारिक जीवन से कोई नाता नहीं है मेरे लिए यह सारा संसार एक परिवार के रूप में ही है और हर व्यक्ति मेरा अपना है और मैं उनका हूँ। किन्तु फिर यदि आपको मुझे पाने की लालसा रखती है तो मुझे पति नहीं अपना पुत्र बना लीजिये। आपको निश्चित रूप से एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा। इससे मेरा संन्यास भी नहीं टूटेगा और आपको एक गौरवशाली पुत्र भी प्राप्त हो जायेगा।
इतना सुनते ही वह महिला स्वामी जी के चरणों में गिर गई और उसने कहा आप वाकई एक महापुरुष है स्वामी जी। इस घटना के बाद वह महिला स्वामी जी की अनुयायी बन गई। और स्वामी जी ने नारी को सम्मान देते हुए दिखला दिया कि नारी को पत्नी के अतिरिक्त आप माँ या बहन के रूप में भी अपना सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी | Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़े और शेयर करें – बारिश पर शायरी
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Life Story of Swami Vivekananda in Hindi
सार –
नरेंद्रनाथ दत्त नामक यह बालक शुरू से जिज्ञासु और आध्यात्म में रूचि लेने वाला था। इसने पूरे जहाँ में आध्यात्म की शक्ति और चमत्कार को दिखलाया। बताया कैसे कम उम्र में भी कोई कितनी ख्याति पा सकता है। उनका जीवन बड़ा ही मुश्किलों भरा था किन्तु ईश्वर पर अडिग विश्वास और कर्म पथ से वे कभी विचलित नहीं हुए। Swami Vivekananda Life Story in Hindi | स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी | Swami Vivekananda Biography in Hindi Wacht in Youtube – Kisan Par Kavita
स्वामी जी ने हर व्यक्ति से उसके अंदर के ईश्वर को जगाने की बात कही। उनका संत कबीर के दोहे के समान साफ सन्देश था – ज्यों तिल माहि तेल है ज्यों चकमक में आग। तेरा सांई तुझ में है जाग सके तो जाग। विवेकानंद जी का साफ मत था कि व्यक्ति यदि खुद के ईश्वर को जगाये तो स्वाभाविक रूप से उसका सर्वांगीण विकास होगा। स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography of Swami Vivekananda in Hindi Read – Saint Kabeer Philosophy
विवेकानन्द का मानना था कि अपना हाथ स्वयं जगन्नाथ है साफ था कि आप खुद ही खुद की मदद कर सकते हो आपके अतिरिक्त कोई दूसरा आपकी मदद करने नहीं आएगा आपको खुद ही मुश्किलों से लड़ना होगा आप को स्वयं अपनी समस्याओं को सुलझाना होगा। तब ही आप श्रेष्ठ जीवन जी पाएंगे। स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी | Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़े – माँ पर शायरी
स्वामी विवेकानंद का मानना था जीवन को यदि सुन्दर बनाना है तो परेशानियों से उलझना सीखो। जो लोग मुश्किलों से बचते हैं वे लोग जीवन कभी कुछ नहीं कर पाते। साथ इससे जो तुम्हे पीड़ा होगी वही तुम्हे दूसरे की पीड़ा अहसास भी करवाएगी। साफ़ जांके पांव ना फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई। स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography of Swami Vivekananda in Hindi पढ़े – आतंकवाद विरोधी लेख
इस महापुरुष को हम एक आदर्श पुरुष भी कह सकते हैं जिसके अंदर नारी का सम्मान, देश प्रेम, भक्ति और सब को साथ लेकर चलना जैसे सभी अच्छे गुण थे। उन्होंने अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी महत्व दिया। चाहे आर्थिक रूप से जो लोग कमजोर थे उनको उठाने का प्रयत्न सदा उन्होंने किया। Swami Vivekananda Life Story in Hindi | स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी पढ़े – जल पर निबंध
स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी
हमारे देश में वे से तो कई महात्मा और और संन्यासी हुई किन्तु स्वामी विवेकानन्द जैसा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व शायद ही कभी देश को मिल पाये। इस स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी में ना केवल उनके जीवन से बल्कि उनके कार्यों से और शिक्षाओं से जाना कि आखिर एक श्रेष्ट जीवन कैसा होना चाहिए और कैसा हो। स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography of Swami Vivekananda in Hindi यूट्यूब पर देखे – माता पिता पर कविता
नरेंद्र नाथ नाम का यह बालक बाल्यकाल से ही इतना प्रतिभाशाली रहा कि जिस किसी के भी वह संपर्क में आया वह व्यक्ति ही उससे प्रभावित हुआ। उसका तेज साफ साफ झलकता था। उसने भगवद गीता को अपने जीवन में अपनाया था। स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography of Swami Vivekananda in Hindi Visit – Corona Vaccine Par Kavita
जब वह अमेरिका गए तो उनका लक्ष्य बड़ा ही साफ था कि उन्हें वहां की धर्म संसद में हिन्दू संस्कृति को सभी के सामने प्रस्तुत करना है इस राह में कहीं मुश्किलें आई यह सब इतना आसान भी नहीं था किन्तु उनके हठ और जिद ने वह सब कर दिखाया जो भी उन्होंने चाहा। Read – Happy Holi Wishes in Hindi
Swami Vivekananda Life Story in Hindi | स्वामी विवेकानन्द लाइफ स्टोरी
यह एक ऐसा व्यक्ति था जिसने माना कि ईश्वर उसके साथ सदा है। चाहे किसी ना उसका साथ भले ही ना दिया हो किन्तु ईश्वर ने उसका साथ दिया। और उसे एक पहचान दिलाई। जो कभी किसी सन्यासी की शायद ही हो पायेगी। स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography of Swami Vivekananda in Hindi
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